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कविता

सिर्फ तुम्हारा खयाल

प्रतिभा कटियार


खिला देता है हजारों गुलाब
बहा देता कल कल करती नदियाँ
सदियों की सूखी, बंजर जमीन पर
तुम्हारा खयाल
कोयल को कर देता है बावला
और वो बेमौसम गुंजाने
लगती है आकाश
टेरती ही जाती है
कुहू कुहू कुहू कुहू
तुम्हारा खयाल
हथेलियों पर उगाता है
सतरंगा इंद्रधनुष
काँधे पर आ बैठते हैं तमाम मौसम
ताकते हैं टुकुर-टुकुर
खिलखिलाती हैं मोगरे की कलियाँ
बेहिसाब
हालाँकि मौसम दूर है
मोगरे की खुशबू का
तुम्हारे खयाल से
लिपट जाती है
मुसुकुराहटों वाली रुनझुन पायल
खनकती फिरती है समूची धरती पर
दुख सारे चलता कर दिए हों
मानो धरती से
और चिंताएँ सारी विसर्जित कर दी हों
अटलांटिक में
तुम्हारे खयाल ने
कंधे उचकाते ही
आ लगता है आसमान सर से
देने को आशीष
हवाओं में गूँजती हैं मंगल ध्वनियाँ
ओढ़ती है धरती
अरमानों की चुनर
बस एक तुम्हारा खयाल है
मुट्ठियों में और
शरद के माथे पर
सलवट कोई नहीं...
 


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